ककोड़ा की खेती: गर्मी और मानसून में बढ़ रही है ककोड़ा की खेती की मांग, एक बार करें बुवाई, 10 साल तक करें कमाई
Today Haryana : ककोड़ा, जिसे काकोरा, कंटोला, खेखसा, वन करेला, या मोमोर्डिका डियोइका भी कहा जाता है, एक ऐसी सब्जी है जो अपने आप जंगल में उग जाती है और बरसात के दिनों में अपनी खास शैली में बेलें लेती है। यह सब्जी खाने में न केवल स्वादिष्ट होती है बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद है। इसकी खेती न केवल कम लागत में होती है, बल्कि इससे किसान दस साल तक लगातार लाभ उठा सकते हैं।
ककोड़ा की खेती का उचित समय और विशेषताएं
ककोड़ा की खेती के लिए उचित समय गर्मी और मानसून सीजन होता है। इसे जनवरी और फरवरी में बोए जा सकता है और उसकी बुवाई जुलाई में की जा सकती है। इसकी खेती में अधिक मेहनत की आवश्यकता नहीं होती, और यह स्वतंत्रता से उग जाती है। यह एक बार बोए जाने के बाद बरसात के समय अपने आप ही फसल देने के लिए तैयार हो जाती है।
ककोड़ा की खेती से लाभ
ककोड़ा की खेती से किसान साल दर साल अपनी आय को बढ़ा सकते हैं। पहले साल में 4 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार होती है, जो दूसरे साल 6 क्विंटल तक बढ़ सकती है। तीसरे साल में यह 8 क्विंटल प्रति एकड़ तक पहुंच सकती है। इस तरह, लगातार बढ़ती पैदावार से किसान को बढ़ती हुई आमदनी की सुविधा मिलती है।
ककोड़ा का बाजार भाव
ककोड़ा की खेती से किसान न केवल लंबे समय तक लाभान्वित होता है, बल्कि इसका बाजार भाव भी अच्छा होता है। इसका बाजार भाव 90 से 150 रुपए प्रति किलोग्राम तक होता है, जो किसान को अच्छा मुनाफा दिलाता है।
ककोड़ा की किस्में
ककोड़ा की कई प्रसिद्ध किस्में हैं जैसे कि इंदिरा कंकोड-1, अम्बिका-12-1, अम्बिका-12-2, और अम्बिका-12-3। इनमें से इंदिरा कंकोड-1 को कमाई के लिए अच्छा माना जाता है, क्योंकि इस पर कीटों का प्रकोप नहीं होता है और यह हाइब्रिड किस्म होती है।
ककोड़ा की खेती का प्रयोग किसानों को लंबे समय तक सतत आय प्रदान कर सकता है और उन्हें मानसून और गर्मी सीजन में अच्छा मुनाफा दिलाता है। इसकी खेती सरल और लगातार होती है, जो किसानों के लिए एक आशाजनक विकल्प हो सकता है।