सिख” बनने के लिए अमृतपान करना व केश रखने जरूरी नहीं; श्रद्धा जरूरी है, परंतु, 'अमृतधारी खालसा' बनने के लिए जरूरी है : ठाकुर दलीप सिंह
To become a “Sikh” it is not necessary to drink nectar and keep hair; Faith is necessary, but it is necessary to become 'Amritdhari Khalsa': Thakur Dalip Singh

“सिख” बनने के लिए: अमृतपान करना व केसाधारी होना आवश्यक नहीं; केवल “श्रद्धा” चाहिए। यह विचार व्यक्त करते हुए नामधारी मुखी ठाकुर दलीप सिंह जी ने कहा कि सतगुरु गोबिंद सिंह जी के समय भी कई मोने श्रद्धालु, बिना अमृतपान किये "सिख" थे और आज भी "सिख" हैं। इस तरह, सिखों की गिनती दो करोड़ नहीं, पचास करोड़ है। उन्होंने कहा कि दशमेश जी के समय भाई घनैया, भाई नंद लाल, दीवान टोडर मल्ल, मोतीलाल मेहरा, नबी खान, गनी खान आदि अमृतपान किये बिना भी महान "सिख" थे और कई नए श्रद्धालु भी, बिना अमृतपान किये उस समय "सिख" बनते थे। यदि उस समय, बिना अमृतपान किए, केस-रहित महान “सिख” थे; तो आज अमृत-रहित मोने श्रद्धालु “सिख” क्यों नहीं हैं तथा नए श्रद्धालु: बिना अमृतपान किये 'सिख' क्यों नहीं बन सकते?
नामधारी मुखी ने आगे कहा कि दशमेश जी ने अपनी रसना से कभी ऐसा नहीं कहा “जो अमृतपान न करे, केश-दाढ़ी न रखे; वह सिख नहीं है”। गुरु जी ने अपनी वाणी में स्पष्ट लिखा है "केस धरे न मिले हरि प्यारे"। आदि गुरु ग्रंथ साहिब तथा दशम गुरु ग्रंथ साहिब में कहीं भी नहीं लिखा "अमृतपान किए बिना तथा केस रखे बिना: कोई “सिख” नहीं हो सकता"। तो फिर हम अमृतधारी खालसा, इस भ्रम में क्यों पड़ गये हैं कि केवल केश रखने वाले व अमृतधारी ही "सिख" हो सकते हैं? "अमृतधारी खालसा" से सनिम्र विनती करते हुए उन्होंने कहा कि जब सतगुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने समय भी, अपने सभी श्रद्धालुओं को अमृतपान करके, केसाधारी खालसा बनने के लिए मजबूर नहीं किया; तो हम क्यों सब को अमृतपान करके, केसाधारी खालसा बनने के लिए मजबूर कर रहे हैं? हम ऐसा क्यों कह रहे हैं कि "सिख" बनने के लिए, अमृतपान करना व केसाधारी बनना अत्यंत आवश्यक है? सिख बनने के लिए तो केवल "श्रद्धा" चाहिए "सतिगुर की नित सरधा लागी मो कउ"।
उन्होंने कहा कि अमृतधारी खालसिओं को अपनी संकीर्ण कट्टर सोच छोड़कर, विशाल सोच अपना लेनी चाहिए तथा अन्य प्राणियों को अपने साथ जोड़ने के लिए: अमृत-रहित व केश-रहित (मोने) श्रद्धाओं को भी “सिख” प्रवान कर लेना चाहिए; जो कि सतिगुरु नानक देव जी की सिखी में प्रवानित है। विचार करने की आवश्यकता है: चलती गोलियों में सतगुरु गोबिंद सिंह जी को उठा कर लिजाने वाले गनी खान, नबी खान, साहिबजादों को दूध पिलाने वाले मोतीलाल मेहरा और हरमंदिर साहिब में करोड़ों रुपये के फूलों से सेवा करने वाले के. के. शर्मा आदि; सिख क्यों नहीं हैं? गुरु जी ने गुरु ग्रंथ साहिब में वचन मानने वाले प्रत्येक श्रद्धालु को "सिख" प्रवान किया है "सो सिखु, सखा, बंधपु है भाई: जो गुर के भाणे विचि आवै" (म.3)। तो फिर, "अमृत रहित व केश रहित (मोने) "सिख" नहीं" का प्रमाणपत्र, हम किसी को कैसे दे सकते हैं?
ठाकुर दलीप सिंह जी ने स्पष्ट किया कि "अमृतधारी-केसाधारी" खालसा तो सतगुरु जी ने केवल एक विशेष कार्य के लिए बनाया था, जो "गुरु नानक नाम लेवा" सिख पंथ की एक श्रेष्ठ संप्रदाय है। इस लिए, सभी अमृतधारियों को अपनी संकीर्ण सोच त्यागकर तथा विशाल सोच अपना कर: सभी "गुरु नानक नाम लेवा" को हर विश्वास और हर स्वरूप से “सिख” प्रवान कर लेना चाहिए, ता कि हर जगह सतगुरु नानक देव जी की जय जय कार हो सके।