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जमीन का अधिकार: पैतृक जमीन पाने के लिए दर-दर की ठोकर खाने पर मजबूर यह किसान, रो-रोकर सुनाई दास्तां

Right to land: This farmer forced to stumble door to door to get ancestral land, told the story by crying
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जमीन का अधिकार: पैतृक जमीन पाने के लिए दर-दर की ठोकर खाने पर मजबूर यह किसान, रो-रोकर सुनाई दास्तां
  
Today Haryana:
भारतीय कृषि संस्थान के अनुसार, कृषि हमारी अर्थव्यवस्था का मौलिक स्तंभ है, लेकिन किसानों को अपनी पैतृक जमीन पर मालिकाना हक पाने में अक्सर समस्याएं आती हैं। इसका एक उदाहरण शहर के बुढ़ाना गांव के किसान रामवीर की कहानी है। वे अपनी ही पैतृक जमीन पर मालिकाना हक पाने के लिए दर-दर की ठोकर खा रहे हैं।

जमीन का अधिकार: दस्तावेजों की महक
रामवीर के पास दस्तावेज़ होने के बावजूद उन्हें उनकी पैतृक जमीन पर मालिकाना हक पाने में कई मुश्किलें आई हैं। 2005 से हुड्डा विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत के कारण उनका अधिकार हानि हो गया है। इसके बावजूद उन्होंने आरटीआई और अन्य सरकारी प्रक्रियाओं के माध्यम से अपने अधिकार की बचाव की कोशिश की है, लेकिन नतीजा नहीं मिला है।

अधिकारियों का भ्रष्टाचार: किसान की चिन्ता
रामवीर के मामले में विभिन्न सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत और भ्रष्टाचार के चलते उनकी जमीन को बेच दिया गया है। उन्होंने अपने मालिकाना हक की पुनर्प्राप्ति के लिए मीडिया और न्याय से यात्रा शुरू की है। उन्होंने सीबीआई और एसआईटी से जांच की मांग की है, ताकि उन्हें इंसाफ मिल सके।
 
किसानों की परेशानियों का समाधान मिलने के लिए रामवीर ने सरकार से न्याय पाने की अपील की है। वे मीडिया के माध्यम से अपनी कहानी साझा कर रहे हैं और उम्मीद है कि उन्हें 10 दिनों के अंदर न्याय मिलेगा। अगर ऐसा नहीं होता है, तो वे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की ओर बढ़ेंगे और अपने अधिकार की लड़ाई जारी रखेंगे।

इस मामले में वकील एपी सिंह ने उनका साथ दिया है और उन्हें इंसाफ दिलाने के लिए सभी माध्यमों का उपयोग किया जाएगा। उनकी संघर्षपूर्ण कहानी दिखाती है कि किसानों को उनके मालिकाना हक की प्राप्ति के लिए संघर्ष करना जरूरी है ताकि वे जीवन की सामान्य सुख-सुविधाओं का आनंद उठा सकें।
 
किसानों के समस्याओं का समाधान मिलने के लिए सरकार को जागरूक होना चाहिए। उन्हें उनके पैतृक जमीन पर मालिकाना हक प्राप्त करने के लिए आसान प्रक्रियाएँ उपलब्ध करानी चाहिए ताकि किसान अपने अधिकार की रक्षा कर सकें। रामवीर की यह कहानी हमें यह सिख देती है कि व्यक्तिगत संघर्ष और न्याय की तलाश किसानों को उनके मालिकाना हक की प्राप्ति में मदद कर सकते हैं।