महाराष्ट्र में विकसित हुईं कपास की 3 नई किस्में: जानिए उनकी खासियत

महाराष्ट्र कृषि विश्वविद्यालय के कपास अनुसंधान केंद्र ने कपास की तीन नई किस्में विकसित की हैं। इन किस्मों का विकास किसानों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे किसानों को कई तरह की फायदे हो सकते हैं। यहां हम जानेंगे कि इन तीन नई कपास किस्मों में क्या विशेषताएँ हैं।
1. एनएच 1901 बीटी
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सांकर किस्म की तुलना में कम रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता: एनएच 1901 बीटी में सांकर वारायटी की तुलना में कम रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता होती है, जिससे किसानों की खर्च पर कमी आ सकती है।
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रोग सहिष्णुता: इस किस्म में रस चूसने वाले कीट, जीवाणु झुलसा रोग, और पत्ती धब्बा रोग के प्रति सहिष्णु होती है, जिससे यields में कमी का सामना नहीं करना पड़ता।
2. एनएच 1902 बीटी
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खेती में उपयोग के लिए अच्छा: एनएच 1902 बीटी की खेती में उपयोग करने के लिए उपयुक्त है और इसकी उपज अच्छी होती है।
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धागों की लंबाई मध्यम: इस किस्म की धागों की लंबाई मध्यम होती है, जिससे किसानों को अधिक संघटन की आवश्यकता नहीं होती।
3. एनएच 1904 बीटी
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सघन खेती के लिए उपयुक्त: एनएच 1904 बीटी खेती में सघन खेती के लिए उपयुक्त है और इसकी उपज भी अच्छी होती है।
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धागों की मजबूती और टिकाऊपन: इस किस्म की धागों की मजबूती और टिकाऊपन भी अच्छा होता है, जिससे किसानों को खेत में स्थायीता मिलती है।
इन किस्मों के फायदे
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किसानों के लिए बीज की लागत कम: इन किस्मों का उपयोग करके किसान अपने बीज की लागत को कम कर सकते हैं, क्योंकि इनमें कम रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता होती है।
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अच्छा उत्पादन: इन किस्मों से प्राप्त उत्पादन अधिक होता है, जिससे किसानों का आर्थिक हित होता है।
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शुष्क भूमि क्षेत्रों में उपयोग: ये किस्में शुष्क भूमि क्षेत्रों में भी खेती के लिए उपयोगी हो सकती हैं, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में कपास की खेती को बढ़ावा मिलेगा।
इन तीन नई कपास किस्मों के विकास से किसानों को कई तरह के फायदे हो सकते हैं। इन किस्मों में सांकर वारायटी की तुलना में कम रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता होती है, जिससे खर्च कम होता है, और यields भी अधिक होती हैं। यह किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है जो उन्हें खेती में अधिक सफल बना सकता है।