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पराली, बिना सहयोग के इस समस्‍या का समाधान नहीं

वायु प्रदूषण पराली जलाए जाने के साथ सड़कों एवं निर्माण स्थलों से
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पराली, बिना सहयोग के इस समस्‍या का समाधान नहीं

वायु प्रदूषण पराली जलाए जाने के साथ सड़कों एवं निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल वाहनों के उत्सर्जन कारखानों से निकलने वाले धुएं के कारण भी फैलता है। इसके अतिरिक्त कचरा जलाने और जेनरेटर चलाने से भी फैलता है

पराली यानी फसलों के अवशेष खेत में जलाने से पैदा होने वाले पर्यावरण संकट के समाधान के लिए केंद्र सरकार की सक्रियता स्वाभाविक है, क्योंकि पंजाब में उसे जलाया जाने लगा है। पंजाब के साथ अन्य राज्यों में पराली एक ऐसे समय जलाई जाती है, जब सर्दियां दस्तक देने लगती हैं। इसके कारण पंजाब से लेकर दिल्ली और उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है। तापमान में गिरावट के साथ यह और बढ़ता जाता है।

विडंबना यह है कि एक अर्से से यह देखने को मिल रहा है कि सरकारें तब चेतती हैं, जब पराली जलाई जाने लगती है। अभी यह कहना कठिन है कि पराली जलाए जाने से पैदा होने वाले संकट के समाधान के लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जो योजना प्रस्तुत करने जा रहे हैं, वह कितनी कारगर होगी, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि पराली दहन को रोकने के लिए प्रभावी उपाय करने की आवश्यकता है। इसमें सफलता तब मिलेगी, जब केंद्र और वे राज्य सरकारें मिलकर समय से काम करेंगी, जहां पराली जलाई जाती है। इसमें किसानों का भी सहयोग चाहिए होगा, लेकिन वे तभी सहयोग दे सकेंगे, जब उनकी समस्याएं हल की जाएंगी। निःसंदेह पराली को खेतों में जलाने से रोका ही जाना चाहिए, लेकिन इसी के साथ यह भी समझा जाना चाहिए कि केवल वही वायु प्रदूषण का एकमात्र कारण नहीं है।

वायु प्रदूषण पराली जलाए जाने के साथ सड़कों एवं निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल, वाहनों के उत्सर्जन, कारखानों से निकलने वाले धुएं के कारण भी फैलता है। इसके अतिरिक्त कचरा जलाने और जेनरेटर चलाने से भी फैलता है। ऐसे में पराली को जलाने से रोकने के साथ ही प्रदूषण के इन कारणों का भी निवारण प्राथमिकता के आधार पर होना चाहिए। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि दिसंबर-जनवरी में जब पराली नहीं जलती, तब भी देश के एक हिस्से में वायु प्रदूषण बना रहता है। कहीं-कहीं तो यह पूरे वर्ष रहता है और उससे छुटकारा पाने के लिए पटाखों पर पाबंदी लगाने जैसे सीमित प्रभाव वाले निर्णय करने पड़ते हैं या फिर बरसात की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

पराली दहन के अतिरिक्त वायु प्रदूषण के अन्य कारणों का निवारण तब होगा, जब शहरों के आधारभूत ढांचे को संवारने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। इस बारे में दावे तो खूब किए जाते हैं, लेकिन यह किसी से छिपा नहीं कि प्रमुख शहरों में ट्रैफिक जाम की समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। यदि वाहन रेंगते हुए चलेंगे तो वे प्रदूषण फैलाने में सहायक ही बनेंगे। वायु प्रदूषण की चुनौती से पार पाने में जनता का भी सहयोग चाहिए होगा। उसे अपने हिस्से की सक्रियता इसलिए दिखानी होगी, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले बदलाव भी पर्यावरण पर गहरा प्रभाव डाल रहे हैं।